नई दिल्ली, 29 नवंबर 2016: प्रजनन चिकित्सा विशेषज्ञों ने मोबाइल फोन के उपयोग के कारण पुरुषों में बढ़ रही इनफर्टिलिटी को लेकर चिंता व्यक्त की है। अमेरिकन सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव मेडिसीन, क्लीवलैंड, अमरीका के सहयोग से दियोस (डीआईवाईओएस) मेन्स हेल्थ सेंटर के द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में आज एकत्र हुए 150 से अधिक विशेषज्ञों ने इस विशय को उठाया। इस अवसर पर उनके संदेषों से युक्त स्मारिका पुस्तक का मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के आईवीएफ और प्रजनन जीवविज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. सुधा प्रसाद ने विमोचन किया।
अमरीका स्थित क्लीवलैंड क्लिनिक के प्रजनन चिकित्सा विभाग के निदेषक डॉ. अशोक अग्रवाल ने अपने अवलोकन अध्ययन के निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा, ‘‘सेलफोन के उपयोग में रोजाना हो रही वृद्धि के कारण वीर्य की गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है। हमारे अध्ययन से पता चला है कि प्रतिदिन चार घंटे से अधिक समय तक फोन का इस्तेमाल करने वाले पुरुशों में शुक्राणुओं की औसत संख्या, षुक्राणुओं की गतिशीलता और सामान्य, व्यवहार्य शुक्राणु की संख्या न्यूनतम हो जाती है।’’
यह अध्ययन एक प्रजनन क्लिनिक में इलाज किये गये 361 पुरुषों पर 2008 में किया गया था। इस अध्ययन में षामिल करीब 10 प्रतिषत लोगों ने सेलफोन का इस्तेमाल कभी- कभार किया था या कभी भी नहीं किया था, जबकि आधे से अधिक लोगों ने अपने सेलफोन का इस्तेमाल एक दिन में दो घंटे से अधिक किया था। दियोस (डीआईवाईओएस) मेन्स हेल्थ सेंटर के क्लिनिकल निदेशक डॉ विनीत मल्होत्रा ने कहा, ‘‘फर्टिलिटी एंड स्टर्लिटी में प्रकाषित इस अध्ययन में निश्कर्श निकाला गया है कि सेलफोन का इस्तेमाल करने से पुरुशों में शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता, व्यवहार्यता, और सामान्य आकृति में कमी आती है जिसके कारण वीर्य की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है।
ब्रिटेन में एक्सेटर विश्वविद्यालय में 2014 में किये गये इसी तरह के एक षोध में शोधकर्ताओं ने पाया है कि पतलून की जेब में मोबाइल फोन रखने पर शुक्राणु की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। इस षोध में पाया गया कि मोबाइल फोन के उपयोग से शुक्राणु की गतिशीलता में आठ प्रतिशत की कमी आई। मोबाइल फोन के संपर्क में रहने पर भी शुक्राणु व्यवहार्यता पर भी समान प्रभाव पड़ा। अध्ययन के निष्कर्ष को जर्नल इनवायरमेंट इंटरनेषनल में प्रकाषित किया गया है।
भारत में पुरुशों में शुक्राणु की गुणवत्ता में लगातार कमी हो रही है और उन 40 प्रतिषत मामलों में यह महत्वपूर्ण माना गया है जिनमें दम्पत्तियों को गर्भधारण करने में कठिनाई हुई।
Source : www.sehat365.com